Ad

हरी खाद

ढैंचा की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी

ढैंचा की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी

भारत के विभिन्न राज्यों में किसान यूरिया के अभाव और कमी से जूझते हैं। यहां की विभिन्न राज्य सरकारों को भी यूरिया की आपूर्ति करने के लिए बहुत साड़ी समस्याओं और परेशानियों का सामना करना पड़ता है। 

आज हम आपको इस लेख में एक ऐसी फसल की जानकारी दे रहे हैं, जो यूरिया की कमी को पूर्ण करती है। ढैंचा की खेती किसान भाइयों के लिए बेहद मुनाफेमंद है। क्योंकि यह नाइट्रोजन का एक बेहतरीन स्रोत मानी जाती है। 

भारत में फसलों की पैदावार को अच्छा खासा करने के लिए यूरिया का उपयोग काफी स्तर पर किया जाता है। क्योंकि, इससे फसलों में नाइट्रोजन की आपूर्ति होती है, जो पौधों के विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है।

परंतु, यूरिया जैव उर्वरक नहीं है, जिसकी वजह से प्राकृतिक एवं जैविक खेती का उद्देश्य पूर्ण नहीं हो पाता है। हालांकि, वर्तमान में सामाधान के तोर पर किसान ढैंचा की खेती पर अधिक बल दे रहे हैं। 

ये भी पढ़ें: किसानों को भरपूर डीएपी, यूरिया और एसएसपी खाद देने जा रही है ये सरकार

क्योंकि, ढैंचा एक हरी खाद वाली फसल है जो नाइट्रोजन का बेशानदार जरिया है। ढैंचा के इस्तेमाल के बाद खेत में किसी भी अतिरिक्त यूरिया की आवश्यकता नहीं पड़ती। साथ ही, खरपतवार जैसी समस्याएं भी जड़ से समाप्त हो जाती हैं।

ढैंचा की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु 

उपयुक्त जलवायु- ढैंचा की शानदार उपज के लिए इसको खरीफ की फसल के साथ उगाते हैं। पौधों पर गर्म एवं ठंडी जलवायु का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है। 

परंतु, पौधों को सामान्य बारिश की आवश्यकता होती है। ढैंचा के पौधों के लिए सामान्य तापमान ही उपयुक्त माना जाता है। शर्दियों के दौरान अगर अधिक समय तक तापमान 8 डिग्री से कम रहता है, तो उत्पादन पर प्रभाव पड़ सकता है। 

ढैंचा की खेती के लिए मिट्टी का चयन

ढैंचा के पौधों के लिए काली चिकनी मृदा बेहद शानदार मानी जाती है। ढेंचा का उत्पादन हर प्रकार की भूमि पर किया जा सकता हैं। सामान्य पीएच मान और जलभराव वाली जमीन में भी पौधे काफी अच्छे-तरीके से विकास कर लेते हैं।  

ये भी पढ़ें: घर पर मिट्टी के परीक्षण के चार आसान तरीके

ढैंचा की खेती के लिए खेत की तैयारी 

सर्व प्रथम खेत की जुताई मृदा पलटने वाले उपकरणों से करनी चाहिए। गहरी जुताई के उपरांत खेत को खुला छोड़ दें, फिर प्रति एकड़ के हिसाब से 10 गाड़ी पुरानी सड़ी गोबर की खाद डालें और अच्छे से मृदा में मिला दें। 

अब खेत में पलेव कर दें और जब खेत की जमीन सूख जाए तो रासायनिक खाद का छिड़काव कर रोटावेटर चलवा देना चाहिए, जिसके पश्चात पाटा लगाकर खेत को एकसार कर देते हैं।

ढैंचा की फसल की बुवाई करने का समय  

हरी खाद की फसल लेने के लिए ढैंचा के बीजों को अप्रैल में लगाते हैं। लेकिन उत्पादन के लिए बीजों को खरीफ की फसल के समय बारिश में लगाते हैं। एक एकड़ के खेत में करीब 10 से 15 किलो बीज की आवश्यकता होती है। 

ढैंचा की फसल की रोपाई  

बीजों को समतल खेत में ड्रिल मशीन के माध्यम से लगाया जाता हैं। इन्हें सरसों की भांति ही पंक्तियों में लगाया जाता है। पंक्ति से पंक्ति के मध्य एक फीट की दूरी रखते हैं और बीजों को 10 सेमी की फासले के लगभग लगाते हैं। 

लघु भूमि में ढैंचा के बीजों की रोपाई छिड़काव के तरीके से करना चाहिए। इसके लिए बीजों को एकसार खेत में छिड़कते हैं। फिर कल्टीवेटर से दो हल्की जुताई करते हैं, दोनों ही विधियों में बीजों को 3 से 4 सेमी की गहराई में लगाएं।

हरी खाद से बढ़ाएं जमीन की उपजाऊ ताकत

हरी खाद से बढ़ाएं जमीन की उपजाऊ ताकत

गेहूं धान फसल चक्र के चलते जमीन की उपजाऊ क्षमता में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। किसी जमाने में बेहतर फसल चक्र के क्रम में साल में कम से कम एक दलहनी फसल हर खेत में ली जाती थी। वर्तमान में फसलें तो 3:00 से 4:00 तक लेने की कोशिश रहती है लेकिन बदले में जमीन को देने के नाम पर केवल डीएपी यूरिया जैसे रासायनिक उर्वरक ही बचे हैं।अब जरूरत जमीन से लेने के साथ उसे कुछ वापस देने की है।वर्तमान समय इसके लिए बिल्कुल उपयुक्त समय है। 

इस समय किसान भाई ढ़ेंचा, समय एवं दलहनी फसलें लगाकर और उन्हें 60 दिन बाद कल्टीवेटर से खेत में जोत कर हरी खाद बना सकते हैं। हरी खाद के लिए सनई एवं ढांचे का बीज थोड़ा ज्यादा डाला जाता है ताकि पौधे पास पास हो और हरी खाद  खेत को भरपूर मिले।वर्तमान में लगाई गई ढांचा एवं समय की फसल को जुलाई के पहले हफ्ते तक जोत कर धान की अच्छी पैदावार ली जा सकती है।दलहनी फसलों की जड़ों में गांठे होती हैं जो मिट्टी को बांटने का काम करती है और इन गांठों मैं पौधे द्वारा वायुमंडल से अवशोषित नाइट्रोजन इकट्ठा होती है जो की आगामी फसल के लिए जमीन में फिक्स हो जाती है।

ये भी पढ़ें:
हरी खाद मृदा व किसान को देगी जीवनदान

 

खेत में हरी खाद पलटने के बाद जो भी फसल ली जाएगी उसके पौधों का विकास अच्छा होगा अन्य की गुणवत्ता अच्छी होगी एवं फसल में रोग संक्रमण भी कम रहेगा। जिन इलाकों में किसान भाइयों के खेत खाली हैं वह पलेवा करके तत्काल हरी खाद के लिए ढेंचा लगा सकते हैं। 2 महीने की फसल की लंबाई ऐसी तीन फिट हो जाती है खड़ी फसल को हैरो से बारीक काट कर मिट्टी में मिला देना चाहिए। 

यदि पानी मौजूद हो इसके बाद खेत में पानी लगा देना चाहिए। पानी लगाने से बहुत जल्दी सडकर मिट्टी में मिल जाता है और मृदा की भौतिक संरचना यानी उपज क्षमता को बढ़ाता है। यह प्रक्रिया बहुत ज्यादा खर्चीली भी नहीं है। बीज और जुताई की लागत लगाकर डेढ़ हजार प्रति एकड़ से ज्यादा का खर्चा नहीं है लेकिन इससे हरी खाद सैकड़ों कुंटल मिलती है।

हरी खाद दे धरती को जीवन

हरी खाद दे धरती को जीवन

खाद कई प्रकार की होती है। पुराने लोग ढेंचा,सनई जैसी अनेक फसलों को हरी खाद के लिए लगाया करते थे लेकिन उपज की अंधी दौड़ में हमने इन्हें बिसार दिया है। उत्पादन तो बढ़ा है लेकिन न तो उचित कीमत मिल रही है और ना पोषण से भरपूर अन्न रह गया है। हरी खाद से जमीन की जल धारण क्षमता से लेकर उपज क्षमता तक बढ़ाती है। अधिकांश इलाकों में तीन से चार माह का समय ऐसा आता है जबकि खेतों में कोई फसल नहीं होती। इस समय को खेत की सेहत सुधारने और हरी खाद उगाने के लिए काम में लिया जा सकता है। वर्षा आधारित इलाकों में इस काम को खेती के एक एक हिस्से को हरी खाद के लिए खाली छोडकर बाकी में फसल लेकर मिट्टी की सेहत सुधारी जा सकती है। मिट्टी से लगातार दोहन के चलते उसमें पौधों की बढ़वार के कारण तत्व खत्म हो जाते है। इन्हें हरी खाद से बढ़ाया जा सकता है। इसके आलवा धान-गेहूं फसल चक्र वाले इलाकों में यदि एक दहलनी फसल का चक्र किसाान भाई बना लें तो भी मिट्टी की स्थिति में सुधार लाया जा सकता है। जैविक खादों से तैयार उत्पादन सेहत के लिए फायदेमंद होने के अलावा रासायनिक खादों के मुकाबले स्वादिष्ठ होता है। जैविक खादों से तैयार उत्पाद खाने से स्वास्थ्य पर होने वाले खर्चे को काफी कम किया जा सकता है। हरी खाद का प्रयोग करने से रासायनिक खादों पर होने वाले खर्चे कम करने के अलावा सामान्य रूप से रोगों से लड़ने में सक्षम फसल तैयार की जा सकती है। हरी खाद बनाने केि लिए  गेंहू काटने के बाद का 60 से 70 दिन का समय मुफीद रहता है। हरी खादों के लिए ढ़ेंचे की बिजाई की जाती है। इसे तकरीबन 60 दिन का होने पर हैरों से खेत में ही कतर दिया जाता है। इसके बाद यदि उपलब्ध हो तो खेत में पानी लगाने से कतरन जल्दी गल सड़कर खेत की मिट्टी में घुल मिल जाती है। इसके अलावा सनई, दहलनी मूंग, उरद, अरहर आदि की जड़ों से भी जैविक खाद मिलता है।
कटाई के बाद अप्रैल माह में खेत की तैयारी (खाद, जुताई ..)

कटाई के बाद अप्रैल माह में खेत की तैयारी (खाद, जुताई ..)

किसान फसल की कटाई के बाद अपने खेत को किस तरह से तैयार करता है? खाद और जुताई के ज़रिए, कुछ ऐसी प्रक्रिया है जो किसान अपने खेत के लिए अप्रैल के महीनों में शुरू करता है वह प्रतिक्रियाएं निम्न प्रकार हैं: 

कटाई के बाद अप्रैल (April) महीने में खेत को तैयार करना:

इस महीने में रबी की फसल तैयार होती है वहीं दूसरी तरफ किसान अपनी जायद फसलों की  तैयारी में लगे होते हैं। किसान इस फसलों को तेज तापमान और तेज  चलने वाली हवाओ से अपनी फसलों को  बचाए रखते हैं तथा इसकी अच्छी देखभाल में जुटे रहते हैं। किसान खेत में निराई गुड़ाई के बाद फसलों में सही मात्रा में उर्वरक डालना आवश्यक होता है। निराई गुड़ाई करना बहुत आवश्यक होता है, क्योंकि कई बार सिंचाई करने के बाद खेतों में कुछ जड़े उगना शुरू हो जाती है जो खेतों के लिए अच्छा नही होता है। इसीलिए उन जड़ों को उखाड़ देना चाहिए , ताकि खेतों में फसलों की अच्छे बुवाई हो सके। इस तरह से खेत की तैयारी जरूर करें। 

खेतों की मिट्टी की जांच समय से कराएं:

mitti ki janch 

अप्रैल के महीनों में खेत की मिट्टियों की जांच कराना आवश्यक है जांच करवा कर आपको यह  पता चल जाता है।कि मिट्टियों में क्या खराबी है ?उन खराबी को दूर करने के लिए आपको क्या करना है? इसीलिए खेतों की मिट्टियों की जांच कराना 3 वर्षों में एक बार आवश्यक है आप के खेतों की अच्छी फसल के लिए। खेतों की मिट्टियों में जो पोषक तत्व मौजूद होते हैं जैसे :फास्फोरस, सल्फर ,पोटेशियम, नत्रजन ,लोहा, तांबा मैग्नीशियम, जिंक आदि। खेत की मिट्टियों की जांच कराने से आपको इनकी मात्रा का भी ज्ञान प्राप्त हो जाता है, कि इन पोषक तत्व को कितनी मात्रा में और कब मिट्टियों में मिलाना है इसीलिए खेतों की मिट्टी के लिए जांच करना आवश्यक है। इस तरह से खेत की तैयारी करना फायेदमंद रहता है । 

ये भी पढ़े: अधिक पैदावार के लिए करें मृदा सुधार

खेतों के लिए पानी की जांच कराएं

pani ki janch 

फसलो के लिए पानी बहुत ही उपयोगी होता है इस प्रकार पानी की अच्छी गुणवत्ता का होना बहुत ही आवश्यक होता है।अपने खेतों के ट्यूबवेल व नहर से आने वाले पानी की पूर्ण रूप से जांच कराएं और पानी की गुणवत्ता में सुधार  लाए, ताकि फसलों की पैदावार ठीक ढंग से हो सके और किसी प्रकार की कोई हानि ना हो।

अप्रैल(April) के महीने में खाद की बुवाई करना:

कटाई के बाद अप्रैल माह में खेत की तैयारी (खाद, जुताई) 

 गोबर की खाद और कम्पोस्ट खेत के लिए बहुत ही उपयोगी साबित होते हैं। खेत को अच्छा रखने के लिए इन दो खाद द्वारा खेत की बुवाई की जाती है।मिट्टियों में खाद मिलाने से खेतों में सुधार बना रहता है,जो फसल के उत्पादन में बहुत ही सहायक है।

अप्रैल(April) के महीने में हरी खाद की बुवाई

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले कई वर्षों से गोबर की खाद का ज्यादा प्रयोग नहीं हो रहा है। काफी कम मात्रा में गोबर की खाद का प्रयोग हुआ है अप्रैल के महीनों में गेहूं की कटाई करने के बाद ,जून में धान और मक्का की बुवाई के बीच लगभग मिलने वाला 50 से 60 दिन खाली खेतों में, कुछ कमजोर हरी खाद बनाने के लिए लोबिया, मूंग, ढैंचा खेतों में लगा दिए जाते हैं। किसान जून में धान की फसल बोने से एक या दो दिन पहले ही, या फिर मक्का बोने से 10-15 दिन के उपरांत मिट्टी की खूब अच्छी तरह से जुताई कर देते हैं इससे खेतों की मिट्टियों की हालत में सुधार रहता है। हरी खाद के उत्पादन  के लिए सनई, ग्वार , ढैंचा  खाद के रूप से बहुत ही उपयुक्त होते हैं फसलों के लिए।  

अप्रैल(April) के महीने में बोई जाने वाली फसलें

april mai boi jane wali fasal 

अप्रैल के महीने में किसान निम्न फसलों की बुवाई करते हैं वह फसलें कुछ इस प्रकार हैं: 

साठी मक्का की बुवाई

साठी मक्का की फसल को आप अप्रैल के महीने में बुवाई कर सकते हैं यह सिर्फ 70 दिनों में पककर एक कुंटल तक पैदा होने वाली फसल है। यह फसल भारी तापमान को सह सकती है और आपको धान की खेती करते  समय खेत भी खाली  मिल जाएंगे। साठी मक्के की खेती करने के लिए आपको 6 किलोग्राम बीज तथा 18 किलोग्राम वैवस्टीन दवाई की ज़रूरत होती है। 

ये भी पढ़े: Fasal ki katai kaise karen: हाथ का इस्तेमाल सबसे बेहतर है फसल की कटाई में

बेबी कार्न(Baby Corn) की  बुवाई

किसानों के अनुसार बेबी कॉर्न की फसल सिर्फ 60 दिन में तैयार हो जाती है और यह फसल निर्यात के लिए भी उत्तम है। जैसे : बेबी कॉर्न का इस्तेमाल सलाद बनाने, सब्जी बनाने ,अचार बनाने व अन्य सूप बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। किसान बेबी कॉर्न की खेती साल में तीन चार बार कर अच्छे धन की प्राप्ति कर सकते हैं। 

अप्रैल(April) के महीने में मूंगफली की  बुवाई

मूंगफली की फसल की बुवाई किसान अप्रैल के आखिरी सप्ताह में करते हैं। जब गेहूं की कटाई हो जाती है, कटाई के तुरंत बाद किसान मूंगफली बोना शुरू कर देते है। मूंगफली की फसल को उगाने के लिए किसान इस को हल्की दोमट मिट्टी में लगाना शुरु करते हैं। तथा इस फसल के लिए राइजोवियम जैव खाद का  उपचारित करते हैं। 

अरहर दाल की बुवाई

अरहर दाल की बढ़ती मांग को देखते हुए किसान इसकी 120 किस्में अप्रैल के महीने में लगाते हैं। राइजोवियम जैव खाद में 7 किलोग्राम बीज को मिलाया जाता है। और लगभग 1.7 फुट की दूरियों पर लाइन बना बना कर बुवाई शुरू करते हैं। बीजाई  1/3  यूरिया व दो बोरे सिंगल सुपर फास्फेट  किसान फसलों पर डालते हैं , इस प्रकार अरहर की दाल की बुवाई की जाती है। 

अप्रैल(April) के महीने में बोई जाने वाली सब्जियां

April maon boi jane wali sabjiyan अप्रैल में विभिन्न विभिन्न प्रकार की सब्जियों की बुवाई की जाती है जैसे : बंद गोभी ,पत्ता गोभी ,गांठ गोभी, फ्रांसबीन , प्याज  मटर आदि। ये हरी सब्जियां जो अप्रैल के माह में बोई जाती हैं तथा कई पहाड़ी व सर्द क्षेत्रों में यह सभी फसलें अप्रैल के महीने में ही उगाई जाती है।

खेतों की कटाई:

किसान खेतों में फसलों की कटाई करने के लिए ट्रैक्टर तथा हार्वेस्टर और रीपर की सहायता लेते हैं। इन उपकरणों द्वारा कटाई की जाती है , काटी गई फसलों को किसान छोटी-छोटी पुलिया में बांधने का काम करता है। तथा कहीं गर्म स्थान जहां धूप पढ़े जैसे, गर्म जमीन , यह चट्टान इन पुलिया को धूप में सूखने के लिए रख देते है। जिससे फसल अपना प्राकृतिक रंग हासिल कर सके और इन बीजों में 20% नमी की मात्रा पहुंच जाए। 

ये भी पढ़े: Dhania ki katai (धनिया की कटाई)

खेत की जुताई

किसान खेत जोतने से पहले इसमें उगे पेड़ ,पौधों और पत्तों को काटकर अलग कर देते हैं जिससे उनको साफ और स्वच्छ खेत की प्राप्ति हो जाती है।किसी भारी औजार से खेत की जुताई करना शुरू कर दिया जाता है। जुताई करने से मिट्टी कटती रहती है साथ ही साथ इस प्रक्रिया द्वारा मिट्टी पलटती रहती हैं। इसी तरह लगातार बार-बार जुताई करने से खेत को गराई प्राप्त होती है।मिट्टी फसल उगाने योग्य बन जाती है। 

अप्रैल(April) के महीने में बोई जाने वाली सब्जियां:

अप्रैल के महीनों में आप निम्नलिखित सब्जियों की बुवाई कर ,फसल से धन की अच्छी प्राप्ति कर सकते हैं।अप्रैल के महीने में बोई जाने वाली सब्जियां कुछ इस प्रकार है जैसे: धनिया, पालक , बैगन ,पत्ता गोभी ,फूल गोभी कद्दू, भिंडी ,टमाटर आदि।अप्रैल के महीनों में इन  सब्जियों की डिमांड बहुत ज्यादा होती है।  अप्रैल में शादियों के सीजन में भी इन सब्जियों का काफी इस्तेमाल किया जाता है।इन सब्जियों की बढ़ती मांग को देखते हुए, किसान अप्रैल के महीने में इन सब्जियों की पैदावार करते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारे इस आर्टिकल द्वारा कटाई के बाद खेत को किस तरह से तैयार करते हैं , तथा खेत में कौन सी फसल उगाते हैं आदि की पूर्ण जानकारी प्राप्त कर ली होगी। यदि आप हमारी दी हुई खेत की तैयारी की जानकारी से संतुष्ट है, तो आप हमारे इस आर्टिकल को सोशल मीडिया तथा अपने दोस्तों के साथ शेयर कर सकते हैं.

सनई की खेती से संबंधित कुछ अहम जानकारी

सनई की खेती से संबंधित कुछ अहम जानकारी

भारत में सनई की खेती हरी खाद अथवा पीले फूलों के उद्देश्य से की जाती है। परंतु, जैविक खेती के चलन में हरी खाद की बढ़ती मांग के बीच इसकी व्यावसायिक खेती लाभ का सौदा सिद्ध हो सकती है। भारत के किसान भाई मोटा मुनाफा अर्जित करने हेतु फिलहाल दोहरे उद्देश्य वाली फसलों की खेती पर बल दे रहे हैं। मतलब कि फसल एक ही होगी, परंतु उससे दो तरह की पैदावार ले सकते हैं। सनई भी इसी तरह की फसल में शामिल है। इसके फूलों का इस्तेमाल सब्जी के तौर पर, जूट के लिये और फसल के बाकी हिस्सों से हरी खाद तैयार की जाती है। इस तरह सनई की खेती करके मिट्टी की उर्वरक शक्ति बढ़ा सकते हैं। जिससे कि फसलों का ज्यादा उत्पादन ले सकें। दूसरी तरफ सनई के पीले फूलों की भी बाजार में बेहद मांग रहती है, जिन्हें बेचकर अच्छी आमदनी की जा सकती है।

सनई की खेती मुख्य रूप से इन राज्यों में की जाती है

नवीन फसल लगाने से पूर्व खेतों में हरी खाद के उद्देश्य से सनई की खेती करने की सलाह दी जाती है। दरअसल, भारत के हर कोने में सनई की खेती की जा सकती है। परंतु, राजस्थान, महाराष्ट्र, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार के किसान इसे हरी खाद के अतिरिक्त इसे व्यावसायिक फसल के रूप में उगाते हैं।

ये भी पढ़ें:
किसान जुलाई-अगस्त में इन फूलों की पैदावार कर अच्छा मुनाफा उठा सकते हैं

सनई की खेती के लिए उपयुक्त मृदा

सनई की खेती के लिए नमी वाली रेतीली मिट्टी अथवा चिकनी मिट्टी को सबसे उपयुक्त मानते हैं। इसकी खेती के लिये खेत में गहरी जुताई निरंतर मिट्टी को भुरभुरा बनाती हैं। उसके बाद पाटा लगाकर खेतों को ढंक दिया जाता है। खरीफ सीजन की फसलों से पूर्व सनई की बिजाई की जाती है। साथ ही, अप्रैल से जुलाई तक बीजों को खेत में छिड़क दिया जाता है। वर्षा आधारित फसल होने की वजह से सनई की खेती में ज्यादा सिंचाई नहीं करनी होती। सिर्फ फूल बनने के दौरान खेत में नमी रखना आवश्यक होता है।

सनई की कटाई

बीज उत्पादन के लिये सनई की खेती करने पर 150 दिन मतलब कि 5 महीने के पश्चात कटाई की जाती है। साथ ही, हरी खाद के उद्देश्य से सनई की खेती करने पर 45 से 60 दिनों के अंदर इसकी कटाई की जाती है। बतादें, कि पूरी फसल को हरी खाद बनाने के लिये खेत में फैला देते हैं।

ये भी पढ़ें:
इन फूलों का होता है औषधियां बनाने में इस्तेमाल, किसान ऐसे कर सकते हैं मोटी कमाई

सनई से आमदनी

भारत के अधिकांश हिस्सों में इसकी खेती केवल हरी खाद (Sanai Green Manure), पीले फूलों (Sanai Yellow Flower) अथवा जूट (Sanai Jute) के उद्देश्य से की जाती है। परंतु, जैविक खेती (Organic Farming) के दौर में हरी खाद की बढ़ती डिमांड (Green Manure) के मध्य इसकी व्यावसायिक खेती (Commercial Farming of Sanai) फायदे का सौदा साबित हो सकती है। बाजार में सनई के फूल भी 200 रुपये प्रति किलो के भाव पर बेचे जाते हैं। इस तरह मृदा हेतु आवश्यक खनिज और पोषक तत्वों से भरपूर सनई की खेती करके 10 प्रतिशत लागत में 100 प्रतिशत मुनाफा कमा सकते हैं।
ज्यादा पैदावार के लिए नहीं पड़ेगी यूरिया की जरूरत, बस इस चीज के लिए करना होगा आवेदन

ज्यादा पैदावार के लिए नहीं पड़ेगी यूरिया की जरूरत, बस इस चीज के लिए करना होगा आवेदन

खेती में किसी तरह के केमिकल का इस्तेमाल ना किया जाए, इसके लिए पूरे देश भर में जोर दिया जा रहा है. हालांकि केमिकल मुक्त खेती को बढ़ावा देने में सरकार भी पीछे नहीं हट रही है. जहां अब किसानों को खेती के लिए अब यूरिया की जरूरत नहीं पड़ेगी. क्योंकि उन्हें सरकार की तरफ से यूरिया से डबल शक्तिशाली हरी खाद ढेंचा की खेती के लिए लगभग 80 फीसद तक सब्सिडी, यानि की आसान शब्दों में समझा जाए तो 720 रुपये प्रति एकड़ के किसाब से अनुदान दिया जा रहा है. आजकल मिट्टी अपनी उपजाऊ क्षमता को खोटी जा रही है, वजह उर्वरकों का अंधाधुन इस्तेमाल करना है. जिसके बाद मिट्टी की खोई हुई उपजाऊ क्षमता को वापस लौटाने के लिए जैविक और नेचुरल खेती की तरफ रुख करने को बढ़ावा दिया जा रहा है. ताकि जमीन को रसायनों से होने वाले गंभीर और खतरनाक नुकसान से बचाया जा सके. इसके अलावा लोगों  को स्वस्थ्य कृषि उत्पाद भी उपलब्ध करवाए जा रहे हैं. जैविक और रासायनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकारें भी अब आगे आ चुकी हैं. और अपने अपने स्तर से किसानों की हर संभव मदद कर रही हैं.

हरियाणा के किसानों के लिए चलाई खास योजना

हरियाणा सरकार राज्य में किसानों को नेचुरल खेती करने के लिए बढ़ावा दे रही है. जिसके लिये कई योजनाओं की भी शुरुआत की गयी है. जिसमें से एक है, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन एंव फसल विविधिकरण योजना. इस योजना के तहत खरी खाद की की खेती के लिए किसानों को 80 फीसद तक सब्सिडी यानि की 720 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से अनुदान दिया जा रहा है. 

हरी खाद की खेती है बेस्ट इको फ्रेंडली ऑप्शन

एक्सपर्ट्स के मुताबिक अगर किसान हरी खास सनई ढेंचा को चुनते हैं, तो उन्हें यूरिया की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी. हरी खाद की कई खासियत हैं, जिनमें एक ये है कि यह बेहद शक्तिशाली खाद है, और यह बेस्ट इको फ्रेंडली ऑप्शन है. खेतों में यूरिया का ज्यादा इस्तेमाल मिट्टी की सेहत बुरी तरह से बिगाड़ सकती है, वहीं हरी खाद से खेत को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा. बताया जा रहा है कि हरी खास वातावरण में नाइट्रोजन के स्थिरीकरण में सहायक है, और मिट्टी में जिवांशों की संख्या भी बढ़ाती है. इससे भूजल का लेवल भी काफी अच्छा होता है. जिस वजह से सरकार इसकी खेती पर भारी भरकम सब्सिडी दे रही है. 

यह भी पढ़ें: देश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा, 30 फीसदी जमीन पर नेचुरल फार्मिंग की व्यवस्था

हरियाणा सरकार 10 एकड़ पर दे रही अनुदान

हरियाणा सरकार ने नोटिफिकेशन जारी कर दिया है. जिसके अनुसार राज्य के किसानों को हरी खाद की खेती के लिए प्रति एकड़ 720 रुपये का अनुदान देगी. इसके अलावा किसान भाई अपने 10 एकड़ तक की यानी की 72 सौ रुपये तक अनुदान ले सकते हैं. इतना ही नहीं हरियाणा सरकार ने खेती में लगने वाले लागत को कम करते हुए 80 फीसद खर्च कुछ उठाने का फैसला किया है. यानि की किसानों को सिर्फ 20 फीसद सब्सिडी पर ढेंचा के बीच क्रिदने होंगे.

हरी खाद उगाना क्यों है जरूरी?

एक्सपर्ट्स की मानें तो, ढेंचा और सनई जैसी हरी खाद मिट्टी के लिए काफी अच्छी होती है. क्योंकि यह खुद ब खुद गलकर अपने आप खाद बन जाती है. गर्मियों के मौसम और तपती धूप में हरी खाद खूब पनपती है. किसान इसकी कटाई के बाद उसी खेत में अन्य फसलों की खेती बड़े ही आराम से कर सकते हैं. हरी खाद का काम मिट्टी में उत्पादन की क्षमता को बढ़ाना है. 

इस तरह करें आवेदन, मिलेगा योजना का लाभ

  • हरियाणा के किसान ढेंचा के बीजों को अनुदान पर पा सकते हैं.
  • आपको आवेदन करने के लिए मेरी फसल मेरा ब्यौरा पोर्टल या फिर इसकी आधिकारिक वेबसाइट agruharayana.gov.in पर विजिट करना होगा.
  • इस वेबसाइट पर 4 अप्रैल 2023 ऑनलाइन आवेदन करने की सुविधा आपको मिल जाएगी.
  • ऑनलाइन आवेदन देने के बाद रजिस्ट्रेशन स्लिप, आदार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड, किसान क्रेडिट कार्ड जैसे जरूरी दस्तावेजों की कॉपी हरियाणा बीज विकास निगम के बिक्री केंद्र पर जमा करना होगा.
  • यहां पर किसान भाई 20 फीसद राशि का भुगतान करने के बाद अनुदान पर हरी खाद का बीज ले सकते हैं.